तरक्की करना है तो हर किसी की हां में हां मत मिलाओ

कई लोग दूसरों को ना नहीं कह पाते इस वजह से धीरे-धीरे उनके समय के लक्ष्य पीछे छूट जाते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है कि नुकसान के बावजूद हम हाँ बोलना चाहते हैं? मनोवैज्ञानिक स्टीव पीटर्स ने मस्तिष्क के एक हिस्से को नाम दिया चिंप। वे कहते हैं कि चिंपू नामक हिस्सा फूड, सेक्स, गॉसिप जैसी क्षणिक प्रशंसा से आकर्षित होता है। इसलिए अक्सर लोग ज्यादा वजन बीमारियां होने के बावजूद खाने को ना नहीं कर पाते। अक्सर लोग अपना शेड्यूल बना लेते हैं लेकिन फिर कोई मूवी या पार्टी के लिए कहता है तो हां कर देते हैं। लोगों को पता है कि गा शिव से लाभ नहीं है फिर भी आनंद आता है इन सभी को ना कहने में मुश्किल होती हैं। इन सभी को ना कहने में मुश्किल होती हैं।


शुरुआत में तो लगता है कि हां कहना अच्छी आदत है क्योंकि इससे तारीफ मिलती हैं लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि एक समय के बाद आप खुद भी खुश नहीं रह पाते। दूसरों को खुश करने के फेर में आपका स्वयं का अस्तित्व खत्म हो जाता है। रिसर्च कहती है कि जिन लोगों को आप लगातार हां कहते हैं वे धीरे-धीरे उस हां को अपना अधिकार मान लेते हैं। जिस दिन आप ना कहते हैं उस दिन उनको लगता है कि आपने वादाखिलाफी की है। 


मैं ना कहने की कला को हां कहने से ज्यादा महत्वपूर्ण मानता हूं और मैं हर दिन ना कहता हूं। आज मैं जहां भी पहुंचा हूं उसमें इसका अहम योगदान है कुछ लोग इसका बुरा भी मानते हैं आपके आसपास के लोग कहते हैं कि आप मैं घमंड हैं आप व्यवहारिक नहीं है या आप स्वयं को कुछ ज्यादा ही समझते हैं। इन से घबराकर और कुछ लोगों की नजर में अच्छा साबित होने के चक्कर में अपना जीवन खराब मत कीजिए। अपनी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं की आहुति मत दीजिए। यह आपका जीवन है खुश रहना, सफल होना परिवार का ध्यान रखना आपका कर्तव्य है आप अपनी प्राथमिकताओं के हिसाब से जीवन जिए।


अगर जीवन में तरक्की पाना है तो हर किसी को हा ना बोले उन लोगों को पहचाने जिन्हें हमें ना कहना है। इस हां कहने को अपनी आदत ना बनाएं। यह चीज आपके तरक्की में बाधक बनेगी। 


किसको ना कहना चाहिए


नेगेटिव थॉट रखने वाले व्यक्ति। वे जो आपको व्हाट्सएप फेसबुक आदि की गायक में व्यस्त रखते हैं। वे जो आपको कुछ समय के आनंद के लिए स्थाई सफलता से वंचित करते हैं। वे जो सफलता के लिए शहर या व्यवसाय बदलने से आप को रोकते हैं या आपको कुछ नया करने बढ़ने से रोकते हैं। शुरू शुरू में जब आप ऐसे लोगों को ना कहेंगे तो आपको आत्मग्लानि होगी शर्म महसूस होगी। आपको यह जान लेना चाहिए कि आपके निजी जीवन में आपके परिजन व आपके इष्ट मित्र को ही आप हां कहे वह भी कुछ सोच समझकर ही। 


हां कहने और ना कहने वाले लोगों से हुए लाभों की तुलना करें


दुनिया में अधिकांश लोग एक नो डायरी बनाकर अपनी इस कमी पर विजय प्राप्त करते हैं हर दिन सोने से पहले वह अपनी डायरी में आज किन लोगों को हां कहा और किन लोगों को ना कहा यह लिखते हैं साथ ही उन लोगों से होने वाले लाभ हानि को भी उसे नोट करते हैं बार-बार लिखने से वह आपके दिमाग में रजिस्टर हो जाएगा। कुछ समय के बाद जब भी आप उस काम को करने के लिए आगे बढ़ेंगे तो आपका मस्तिष्क आपको रोकेगा। डायरी में लिखी सूची में से आपको एक एक करके आदतें छोड़ें एक साथ बड़ा प्रयास ना करें। उदाहरण के लिए आपके ऑफिस पर कोई व्यक्ति आकर काशिफ करता है तो उसे हफ्ते में 3 दिन नो कहें। इसके लिए भले ही आपको कोई भी बहाना बनाना पड़ेगा उस वक्त अपनी सीट से उठकर कहीं जाना पड़े। 


जैसे जैसे अपना कहने लगेंगे वैसे वैसे आपका व्यक्तिगत और व्यवसाय की जीवन सफलता की ओर पड़ेगा आपके पास अपने परिवार अपने काम और खुद के लिए पूरा वक्त होगा। 


- डॉ. उज्जवल पाटनी


मोटिवेशनल ऑथर